सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Tuesday, September 20, 2011

बस यूँ हीं...

1.
एक नज़र देखा और तेरे तलबगार हो गए,
     खता थी या मोहब्बत जो रुसवा सरे-बाज़ार हो गए...

2.
यूँ  खुद को दोष न दे ये इनायत है,
      कि ग़म ही सही कुछ तो दिया उसने...

3 comments:

  1. सराहना के लिए धन्यवाद सुषमा जी...

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  2. लाजबाब ....बहुत खूब ...!

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  3. बहुत बहुत आभार केवल राम जी

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