सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Friday, September 27, 2013

पपीते के पत्ते पर...

पपीते के पत्ते पर पानी गिराता,
ये बादल बढ़ा है मन को रिझाता,
कही शोर बिजली कड़कने का होवे,
पवन चल रहा है फसल लहराता,

       जो सब कुछ हरा है उसको सजाता,
       पपीते के पत्ते पर... !!

नहीं कोई रेखा किरण की दिखे है,
गरजती है चपला चमक ना दिखे है,
है बदली का घेरा और हल्का अँधेरा,
कही फूल पौधों में आधे खिले हैं,

      ये मौसम हमेशा ही कितना लुभाता,
      पपीते के पत्ते पे...  !!

फसल की सहेली बरखा सुहानी,
झरता है तन से  मोती सा पानी,
धानो की बाली अभी है कुवांरी,
उड़ेले है इसमे बरखा जवानी,

      हल्की फुहारों से प्यास बुझाता,
      ये बादल बढ़ा है मन को रिझाता,
                               पपीते के पत्ते पर... !!


                                                            --- मनीष

Friday, January 25, 2013

यकीं मानो अकेले में बहुत रोया है वो,
उदास चहरे को हँसाने का हुनर आता है जिसे...!!