सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Wednesday, April 11, 2012

अगला पड़ाव... और फिर कुछ अपने पीछे छूट गए

जैसे लगता है कल ही की तो बात है, अभी कल ही तो घर से आये है...; मगर देखते ही देखते चार साल बीत गए और पता भी नहीं चला । पहली बार घर से निकला था, कही बाहर, पढ़ने के लिए..., नयी जगह, नया वातावरण और सभी नए चहरे । और इन्ही नए चेहरों में कुछ अपनो को चुनना होता है । क्यों कि मेरे सभी पुराने साथी पीछे छूट गए या कुछ कही और चले गए । 17 अगस्त  2008 , पहली बार एक अजनबी शहर में आया था, लखनऊ में । सब कुछ नया नया सा था । मन में एक उल्लास था, प्रसन्नता थी और एक विश्वास, मेहनत से पढ़ के कुछ बनाने का । क्या हुआ, क्या बना ये बात फिर कभी होगी । आज कुछ और ही सुनाने जा रहा हूँ ।
    अभी अभी मैंने अजनबी चेहरों का ज़िक्र किया, इन्ही चेहरों में कुछ ऐसे चहरे है जिनको मैंने चुना; या फिर यूँ कहिये कि इनका साथ मिलना ही था । मेरे कुछ दोस्त, बहुत ही प्यारे, सभी अलग अलग जगहों से थे मगर एक बात सबमे सामान थी वो ये कि हम सभी बेवक़ूफ़ थे । न जाने क्यों हममे इतनी घनिष्टता हो गयी कि... और ये घनिष्टता एक गहरी दोस्ती में बदल गयी । सभी साथ मजा करते थे, साथ साथ घूमना, साथ ही कालेज जाना, साथ में गुल्ले की दुकान पर चाय पीना। और देखते ही देखते पढाई भी पूरी हो गयी, तीन साल यूँ ही बीत गया । फिर सात महीने मैं लखनऊ में ही रहा अपने एक दोस्त के साथ, मगर इस बार मोहल्ला अलग था, गलियां नयी थीं और यहाँ भी कुछ बहुत अच्छे लोग मिले । और सात महीनों बाद मैंने अपना पड़ाव बदल लिया, मगर मेरे दोस्त, मेरे अपने पीछे छूट गए । शायद यही ज़िन्दगी है कुछ बिछड़ जाते है, कुछ साथ चलते है और कुछ नए भी आते है । मैं आज इन्ही दोस्तों के बारे में लिख रहा हूँ, वो सभी दोस्त जो मेरे साथ रहे और आज भी हैं मगर अब फेसबुक पर :-) ।
    कुछ दोस्त मेरे शहर, मेरे गाँव  के है और यहाँ मैं इनके बारे में बस इतना ही कहूँगा की ऐसे दोस्त सभी को मिले क्यूँ की ये बहुत ही अच्छे हैं। और मेरा सबसे प्यारा दोस्त शैलेश, गोल-मटोल फ़ुटबाल सा, जिसने मुझे बहुत कुछ सिखाया है, ये सबसे अच्छा है। क्यों है ये मैं नहीं जानता । इससे ज्यादा मैं इन सब के बारे में नहीं लिखने वाला हूँ क्यूँ की मैं हमेशा इनसे मिलता रहूँगा और कहानिया बनती रहेंगी ।
   अब मैं अपने उन दोस्तों का नाम लिख रहा हूँ जिनसे मैं लखनऊ में मिला - शिवेंद्र, सौरभ, कौशल,गौरव, रणधीर, राघवेन्द्र, विनीत, शिवेश, तहेंद्र, और अनुज । और इन्ही की यादों को लिख रहा हूँ क्यों कि न जाने वक़्त फिर कब मिलाये इनसे और न जाने कब कोई और कहानी बने...
    सबसे पहले तो मैं इन सबसे ये कहूँगा, "यार बहुत याद आते हो तुम सब..., न जाने वक़्त फिर कब मिलाएगा हमे" । अपनी यादों को संजोये रखने के लिए 'तुम सब' को लिख रहा हूँ । जाहिर है मेरे शब्द सबकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी से जुड़े होंगे और इसलिए मैं माफ़ी चाहूँगा अगर किसी को बुरा लगे ।
    
 


शिवेंद्र ( सिंह साब )
एक स्मार्ट और गुड लूकिंग पर्सनालिटी, जिसे एक ही शौक़ है "शौक़" का, हर तरह का शौक़, जैसे बाइक, मोबाईल, कपड़े, खाना, घूमना, और भी बहुत कुछ । और सबसे बड़ा शौक़ अच्छी गर्ल फ्रेंड का, पर और जनाब इस मामले में बहुत ही भाग्यशाली है और धनवान भी, पर इस मामले में दुर्भाग्य-पूर्ण बात क्या है ये आप उन्ही से पूछियेगा, मुझे मालूम तो है पर कह नहीं सकता। दिल का माजरा है । बस इतना इशारा देता हूँ कि "अच्छी" की तलाश अभी ख़त्म नहीं हुई । 
तीन साल सात महीने, काफी लम्बा वक़्त होता है और इस वक़्त में हमने साथ मिल कर जिंदगी को समझा है । पारिवारिक पृष्ठभूमि और परिस्थितिया काफी मिलती-जुलती है अंतर है तो सिर्फ सोच में, और वो भी केवल कुछ मुद्दों पर । न जाने क्यों पर हर एक बात जो और किसी से शायद न कह पाता हो, मुझसे कहता है । इसे मैंने दिल खोल कर हँसते हुए भी देखा है और उस वक़्त भी इसके साथ रहा जब यह फूट-फूट कर रोया हो । बिलकुल छोटे भाई जैसा लगता है । इन तीन सालो में कई लडको से मन-मुटाव हुआ पर इससे अभी तक नहीं । कभी कभी बहुत गुस्सा भी आता था पर फिर न जाने क्यूँ...
अच्छा बच्चा है हर चीज को दिल से देखता है । पढने में इसका बिलकुल भी मन नहीं लगता । एक मध्यस्त विचार वाला व्यतित्व है । बहुत ही भावुक है और अक्सर गलत फैसले कर लेता है । कुछ फैसलों ने तो इसे लगभग तबाह ही कर डाला है । इसके अन्दर मैंने एक अजीब सा आदमी देखा है जो अकेले तो रह सकता है  पर रहना नहीं चाहता । और उस अकेलेपन को दूर करने के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है । बहुत कुछ खोया है । बदकिस्मती कहे या और कुछ, पर जिसे भी इसने दिल से जोड़ा है उन लोगों ने इसे बहुत रुलाया है । 
  छोटा सा परिवार है, घर में पिता जी है, माँ और एक प्यारी सी छोटी बहन है । पर इन तीनो के पास बस एक ही चीज है और वो कौन है ये बताने की जरुरत नहीं। एक माध्यम वर्गीय परिवार से जुड़े होने के कारण खुशियाँ तो शायद कम ही मिली हैं, बहुत से अरमान भी अधूरे ही रह गए है । और अपने बलबूते पर जो भी पाया है उसने इसे खुशियों की तुलना में तकलीफें ज्यादा दी है।
  शुरूआती दिनों की बात करे तो कालेज वालो ने बहुत रुलाया है हमे। साथ कालेज जाते थे, साथ बैठते थे और साथसाथ ही लौट भी आते थे। तमाम चिंताए थी, एसाइनमेंट, इन्टरनल एक्जाम और भी बहुत कुछ। शाम को आने के बाद लगभग टूट जाया करते थे। इन सारी चिंताओं से निज़ात पाने के लिए एक ही चीज थी, 'गुल्ले की चाय'। उस वक़्त जब अँधेरे और उजाले दोनों ही धुंधले होते थे, हम चाय पिया करते थे और मन की भड़ास निकाला करते थे।
    कुछ अच्छी बाते बताता हूँ । शिवेंद्र का सबसे पसंदीदा काम है सोना । जब भी वक़्त मिलता है सोता है, पर बदकिस्मती से ज्यादा देर सो भी नहीं पता है। और इससे भी ज्यादा पसंद है ठेले पर भटूरे और पुरिया खाना। आलू के पराठे भी बहुत पसंद हैं। पर मिलते तभी है जब घर जाता है । और घर से आते वक़्त मेरे हिस्से का माँ-बहन का प्यार  पुरियों में भर कर लाता है, पर नसीब को अब वो प्यार भी नहीं रास आया। 
बहुत दूर हूँ अब...



सौरभ ( मोटू )
अच्छा बन्दा है, बहुत प्यारा एक दम गोल-मटोल फ़ुटबाल जैसा, हमेसा साथ देने के लिए तैयार । पारिवारिक पृष्ठ-भूमि बहुत अच्छी है । जब से आँख खुली है लखनऊ में ही है । और शायद तभी से "पना" वाली भाषा बोलता है । जैसे "खूबसूरत-पना , लड़क-पना", किसी भी शब्द में पना जोड़ देने का हुनर है बन्दे में, ये कोई आसान काम नही है। और अंग्रेजी तो माशा-अल्लाह, क्या बोलता है- "word -कोष"; ' भाई हम लोगों का word कोष कमजोर है '-- ऐसे कई वाक्य है... ये हुनर है इसका ।
हर बात में भाई बोलना," मनीष भाई ये बात, शिवेंद्र भाई वो बात..., भाई हमे क्या हम तो आ जायेंगे..."
और एक बार शुरू हो गया तो...
निर्णय लेने में कमजोर है, बहुत आगे पीछे सोचेगा और फिर बोलेगा , " भाई तुम्हे क्या लगता है, क्या करना चाहिए, देखो अगर हम लोग ऐसा करते है तो ये प्रॉब्लम आएगी, वैसा करते है तो ये प्रॉब्लम आएगी, कुछ  समझ में नहीं आ रहा यार; तुम बताओ क्या करना चाहिए "
"मजाक नहीं भाई कुछ तुम भी तो बोलो, देखो ऐसा है, देखो वैसा है..."
एक और बात, आप फोन करके देखिये, सवाल पे सवाल, जवाब चाहे मिले न मिले, " भाई कैसे हो , क्या हो रहा है, और कुछ हुआ, कोई नयी खबर, तुम्हारे काम का क्या हुआ, घर पे सब ठीक... । बस गियर लगाएगा और बिना ब्रेक और क्लच के नॉन-स्टॉप बस एक बात से दूसरी बात, एक सवाल से दूसरा सवाल। बुरा नहीं मानना दोस्त, ये काबिलियत है तेरी ।
पढाई लिखाई में सामान्य है, समझाने से ज्यादा याद करने में सक्षम है। इसमे थोड़ी दृढ़ता कि कमी है, थोडा सा डर है । इसे हमेशा एक सहारा चाहिए । आगे खड़े होने या किसी का सामना करने में झिझकता है ।
व्यक्तिगत जिंदगी काफी व्यस्त है । सारे घरेलू कामों की जिम्मेदारी इसी की है । सामाजिक दायरा भी काफी बड़ा है, तो... जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं । और शायद इसी लिए खुबसूरत चेहरों के शहर में रह कर भी अभी तक किसी की आँखों में नहीं डूबा । वरना ऐसा हो नहीं सकता की मोहब्बत के शहर में रहने वाला... ह्ह्ह्हह। या शायद हमे मालूम ही न हो ।
एक बात हमेसा याद रहेगी 'टिफिन', ये हमारे लिए टिफिन लाया करता था। कालेज में जब जोरो की भूख लगती थी तो माँ के हाथों की बनी पुरिया और पराठे मिल जाया करते । इससे भूख मिटे न मिटे मगर ताकत बहुत मिलती थी।
और क्या कहूँ इसके बारे में, बहुत अच्छा इंसान, कभी झगडा कर ही नहीं सकता, हमेसा मीठा बोलता है,  लखनऊ में पला-बढ़ा है तो वह की तहज़ीब की छाप इसके व्यक्तित्व पर साफ दिखाती है । और सबसे बड़ी बात अपनी जिम्मेदारी समझता है, भागता नही है; और क्या चाहिए एक अच्छे दोस्त, एक अच्छे इंसान में । इतना हुनर कम तो नहीं...


कौशल ( केके/ कल्लू/ केलू/..../ झाँसी के... )
KK , कल्लू , केलू, कुलबुल कांडे.. और भी अनेक नाम । झांसी का..... है, मतलब झाँसी का रहने वाला है । अजीब बन्दा है, समझो तो बस एक ही बात समझा आती है कि ये अभी बड़ा नहीं हुआ । लड़कपन अब भी बाकी है । थोडा सा डर है इसके अन्दर, और सोच भी अभी बछो जैसी है किसी प्रकार की प्रौढ़ता नहीं नजर आती । पढाई में भी कुछ खास अच्छा नहीं है । पर गाली देने में तो जवाब नही इसका ।
   हम लोगो ने  इसकी जितनी बजायी है, पूछिये मत...! इसको हर बाद के लिए जिम्मेदार बना के रखा था । कालेज की सड़क गन्दी है, केलू से कहो, बगीचे में पानी नहीं, केलू से कहो, tiolet गन्दा हो तो भी... बेटा कल्लू...सफाई कराओ, फ्रीजर में पानी नही या ठंडा नही हो रहा,... कल्लुआ कहा है, कौशल झंडे गंदे हो गए है, सिक्यूरिटी स्टाफ कहा है कौशल, और भी बहुत कुछ । जैसे हर बात का ठेका इसी को दिया गया हो । और इस पर यदि यह कुछ बोलतातो सभी मनीष से कहते । मैं नहीं, एक और है मनीष त्रिपाठी, मैनेजर, कौशल का मैनेजर । और फिर शिकायत सुनकर मनीष कुछ सुनहले शब्दों का प्रयोग करता था । और इसके लिए अन्तिम हथियार था इसका नाम 'कौशल किशोर' । जब अंतिम वार करना हो तो हम कहते थे,"कौशल किशोर कहीं के " । ये सब इसे भी बहुत अच्छा लगता था । बहुत मजे किये हम लोगो ने ।
    इसे एक लड़की से प्यार है और उस प्यार में भी इसकी बच्चो वाली नादान और दिल को छू जाने वाली सोच दिखती है, आज भी । ये हमेसा सोचता है एक दिन वो दौड़ती हुई आएगी और इसकी बाहों में समा जाएगी, पगला कही का...  लड़की भी झाँसी की है, प्यार ग्रेजुएशन का और भावनाए लड़कपन की है । गणित पढ़ने वाला लड़का जीव विज्ञान पढ़ने वाली लड़की से जा कर उसकी नोटबुक मांगे, तो इसे क्या कहेंगे बेवकूफी या... । सभी जानते है की इस प्रेम कहानी में इसके पक्ष में कुछ हो नही सकता, मगर न जाने क्यूँ इसे यकीन है कि एक दिन वो इसे जरुर मिल जाएगी । अब देखते है भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है ।
   दो साल हमारे साथ बड़े मजे से रहा, साथ मौज करते थे, घूमते थे, खाते थे, हर तरह की बाते करते  थे , झगड़ते भी थे और फिर मिल भी जाते थे।  पर आखिरी सेमेस्टर में न जाने क्यूँ कटा कटा सा रहने लगा था । कुछ भी बताता नहीं था , हमारे साथ रहना भी कम कर दिया, और कुछ नए दोस्त भी बना लिए थे ।
क्या फर्क पड़ता है, दोस्त तो अब भी है हमारा...। अब झाँसी में है, अपने घर ।
   और एक बात बताना चाहूँगा यह चाय नहीं पीता है, समोसे बहुत खाता है। इसकी दिली तमन्ना है गर्ल्स होस्टल में वार्डेन बनाने की । या फिर ठेले पर चूड़ियाँ बेचने की । और ऐसा क्यों है, ये बात वही अच्छी तरह से बता सकता है ।
तीन सालो का साथ कुछ पंक्तियों में लिखना संभव नहीं, इसीलिए अब रुक रहा हूँ ।


    
गौरव 
गौरव श्रीवास्तव, बी टेक (सी एस ) । जिस मकान में मैं रहता था ये भी उसी मकान में रहने आये थे ।
 
जहा तक मैंने इन्हें जाना है, ये एक साफ़ दिल के आदमी है । बहुत ही स्नेह था इनका मेरे प्रति । आज भी है, मगर आज हम साथ नही है । गौरव भाई जॉब कर रहे है । और अब जुड़े रहने का एक ही जरिया है, फेसबुक ।




रणधीर ( बागी )
 पूरा नाम रणधीर बागी, पर सभी बस 'बागी' ही कहते है । वाराणसी का सीधा साधा बच्चा जिसमे बनारस की संकृति की असर दिखाई देता है । सिर्फ कहने को जूनियर है । घंटो बहस किया करता था । इसकी सोच अभी परिपक्व नहीं हुई है । जब भी इसे जिंदगी की पेंचीदगी दिखाई देती है, ये उस पर यकीन नहीं कर पाता है । अक्सर एक सवाल किया करता था,"  कोई ऐसा कैसे कर सकता है? " और मैं एक ही जवाब देता था," अभी बच्चे ही हो, बड़े हो जाओ बागी ।" इसकी सबसे अच्छी बात है इसका स्वाभाव, बहुत ही मृदुल स्वाभाव का बंदा है । जब भी देखो मुस्कुराता रहता है । जहा तक मैंने इसे जाना है, इसने जिंदगी में केवल अनुकूलता ही देखी है । हो सकता है इस मामले में मैं गलत हूँ । एक और बात, अच्छी है या नहीं मैं नहीं जानता पर ये नींद से मजबूर रहता है । बहुत जल्दी सोता है । मजा तो तब आता था जब पेपर होते थे । मैं हर घंटे इसका दरवाजा खटखटाता था और हर बार ये सोया ही मिलता था । क्यों बागी अब भी आलम यही है या कुछ सुधार हुआ है? एक और मजेदार बात, इसे खाना बनाना नहीं आता था, अब तो शायद सीख गया है । एक अच्छा आर्टिस्ट है और लिखने का हुनर भी जनता है ।
बहुत सी यादें है कितना लिखूं...?



राघवेन्द्र ( रघ्घू भाई )
इन तीन साल और सात महीनो में जितने लोगो से मैं मिला उनमे सबसे अच्छा व्यक्तित्व राघवेन्द्र भाई का है । हम सभी प्यार से इन्हें रघ्घू भाई कहते है । बहुत ही सरल स्वभाव का इन्सान । चाहे कितना भी थके हों, कितना भी परेशान हों, आप एक बार कहिये,"रघ्घू भाई काम है"; बंदा तुरंत तैयार हो जाता है । इतनी आत्मीयता मैंने किसी में नहीं देखी । इनके दिल में बस प्यार है और कुछ नहीं । किसी के लिए द्वेष नहीं है । व्यक्तिगत जिंदगी में थोडा सा व्यस्त रहते है और कभी कभी परेशान भी होते है क्योंकि एक गर्ल फ्रेंड है इसलिए परेशान होना स्वाभाविक है, पर चहरे की हँसी कभी गायब नहीं होती । मैं इनके बारे में बहुत कुछ तो नहीं जानता पर एक बात जरुर कहूँगा की अगर एक अच्छे व्यक्तित्व की उपमा देनी हो तो 'राघवेन्द्र सिंह' कहना पर्याप्त होगा ।
आपकी दोस्ती हमेशा याद रहेगी ।


शिवेश ( बापू /रामदास/आर डी बाबा/...)
 बापू, रामदास, आर डी बाबा, पोंडा बाबा और भी अनेक नाम...। इसका और मेरा साथ चंद दिनों का है । बहुत ही भावुक व्यक्तित्व का बालक है और इसीलिए इसका लोगो से बहुत जल्दी लगाव हो जाता है । हम जब भी मिले है जलेबी-नुमा शब्दों का प्रयोग किया है, और आज भी फेसबुक पर यह प्रक्रिया जारी है । अगर आपको देखना हो कि शब्द भी किस हद तक मर्यादाहीन हो सकते है तो हमारी बातचीत सुनिए । हा मगर हम किसी रिश्ते कि मर्यादा को धूमिल नहीं करते । नरम दिल का एक भावुक सा बन्दा है, शायद यही इसकी अच्छाई है मगर बहुत जल्दी लोगो से घुल-मिल जाना और बहुत ही घनिष्ठता से जुड़ जाना इसकी कमी है ।
इससे ज्यादा क्या कहूँ कि हममे प्यार भी बटता है तो कुछ अलग अंदाज़ में...।


विनीत ( विशाल भाई/डाईरेक्टर साब )
फिल्म मिडिया से जुदा हुआ बंदा । कुछ दिन इनके साथ काम भी किया । काफी मजा आया । जो चीजे सिनेमा के परदे पर दिखाती है उसे परदे तक लाने में कितनी मेहनत लगती है ये पता चला मुझे । व्यक्तिगत तौर पर इनके पास बहुत कुछ है, बुलंद आवाज, खुबसूरत चेहरा, अभिनय, कला और एक गर्ल फ्रेंड भी । मगर यदि कुछ नहीं है तो वो है अच्छे दोस्त । ऐसे दोस्त जो इन्हें ये बता सके कि ये कहा चूक रहे हैं। लगन और मेहनत दोनों है, बस थोडा सा बहक जाते है ।
बस इतना ही जाना है ।







इन सब में सबसे बुरा एक बंदा है, मनीष यानि मैं, अपने दोस्तों के लिए 'अंकल' । कभी किसी पर यकीन नहीं करता, किसी की परवाह नहीं करता। जो भी किया बस अपने लिए ही किया । किसी दोस्त के काम नहीं आया, कभी किसी की मदद नहीं की । आज भी ऐसा ही हूँ, और कल भी ऐसा ही रहूँगा । मैं अपने अन्दर बदलाव नहीं ला सकता, मैं परिवर्तन का विरोध करता हूँ ।
मैंने सभी दोस्तों के बारे में ये चंद बातें बस इस लिए लिखीं ताकि मैं इन सबकी यादों को संजों कर रख सकूँ । बीते हुए तीन साल मेरी ज़िन्दगी के सबसे खुबसूरत दिन थे ।  हालाँकि इन्ही तीन सालों में सबसे ज्यादा परेशान भी रहा मगर फिर भी दावे से कह सकता हूँ की ज़िन्दगी फिर ऐसे दिनों को नहीं दे पायेगी । और एक बात और बताना चाहूँगा कि यही वो लोग है जिनकी आह-वाह ने मेरे शब्दों में परिपक्वता ला दी, नजाकत ला दी, मोहब्बत ला दी और मेरे शब्द इनके शुक्रगुजार हैं ।
दोस्तों... नसीब से ज़िन्दगी में खानाबदोशी ही मिली है, कल तुम्हारे साथ थे, आज यहाँ पड़ाव डाला है, कल कही और होंगे । पर जहा भी होंगे हूँ जुड़े रहेंगे...
FRIENDS ....