सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Thursday, September 15, 2011

तुम्हारी आवाज़...

तुम्हारी  आवाज़ ,
खुबसूरत  कितनी , कितनी  सुरीली,  कितनी  मासूम...
जैसे  साज़  पे  चहल-कदमी की हो शब्दों ने,
खनक है एक  ऐसी,
कांच के फर्श पे मोतियों की झंकार हो जैसे...
सुन के ऐसा लगा,
जैसे  किसी ने संतूर  पे,
मोहब्बत  का  मधुर  तान  छेड़ा  हो,
या  गुलाब  की  पंखुडियो  को  छू  कर ,
वसंत  की  हवाओ  ने  गाया  हो  इश्क  का  तराना ...
कहू  क्या  और  कुछ  शब्द  नहीं  सूझते,
खफा न हो जाना कही,
मेरे अरमानो की अभिव्यक्ति से...
क्यों कि,
मेरा  तुमसे नाता है कुछ अजीब सा,
नहीं  दे सकता मै जिसे,
मोहब्बत  का  इल्जाम...
कुछ ऐसा एहसास है  ये,
चाह कर भी,
बयाँ नहीं कर सकता...
पर बेनाम भी नहीं रख सकता...


दिल  कि गहराइयो से,
जहा  धड़कने  मोहब्बत  का  तराना  गाती  है...
तुम्हारे  लिए ....
सिर्फ  तुम्हारे  लिए ....
...क्यों  कि  तुम  बहुत  ख़ास  हो  मेरे  लिए

मेरी  उस  गुमनाम  दोस्त  के  नाम 
जिसे मैंने कभी देखा ही नहीं,
कभी सुना ही नहीं...
पर समझता हूँ उसे,
महसूस  करता  हूँ  उसकी  धडकनों  की  आहट...

पर  काश वो भी....!


उस बेनाम खनकती आवाज़  की  मलिका  के  लिए ,
मेरा प्यार...
---मनीष.

10 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत रचना....

    ReplyDelete
  2. गुमनाम दोस्त के प्रति लिखी मन भावन पाती ...

    ReplyDelete
  3. सभी को सप्रेम धन्यवाद...

    ReplyDelete
  4. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

    ReplyDelete
  5. आभार संजय जी,
    मुझे तो बस शब्दों का शौक़ है, मुझे लिखने का हुनर नहीं आता...

    ReplyDelete
  6. "mera tumse hai nata kuchh ajeeb sa"..


    jise main shbdon mein nahin kah sakta..jise kahne ki zaroorat naa hi pade toh behtar...par jise agar tum samajh sako ya sun sako toh shabdon aur binduon ka pyramid badhaane ki aavshyktaa hi naa pade..

    ReplyDelete
  7. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद भावना जी...

    ReplyDelete