सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Tuesday, February 14, 2012

मैं वो हूँ...

प्रेम की वेदी पर दिन-रात मैं जलता रहा,
मैं वो हूँ जिसको कि वो आँख से छलता रहा...
अब उजाला मेरी लौ का देखकर उसने कहा,
कौन है अंगार में जो बैठ कर हसता रहा !!






( चार पंक्तियाँ एक कविता की...)

Thursday, February 09, 2012

कभी ...

कभी डूबे तो तिनको ने दिया था हाथ बढ़कर के,
     कभी कश्ती में थे फिर भी लहरों से मात खायी है...
................
...............
कभी ग़म से घिरे थे फिर भी हसीं ने साथ ना छोड़ा,
     कभी खुशियों की महफ़िल में भी आँखें डबडबाई है...


( कुछ पंक्तियाँ एक मेरी एक कविता से जो मेरे अंतर्मन में है ...)

बिखरने के लिए...

टुकड़ों में जीने  की आदत छोड़नी होगी हमे,
बिखरने के लिए जमीं भी कम पड़ने लगी है...




( मेरी कविता की दो पंक्तियाँ )