सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Sunday, July 31, 2011

कुछ नींद थमी है पलकों में,
कुछ ख्वाब सजे है आँखों में,
कोई प्यारा सा है दिल में बसा,
है जिसकी महक मेरी साँसों में...

Saturday, July 30, 2011

कुछ शब्द उसके लिए...

मेरी कल्पना...
हमारा साथ कोई बहुत पुराना नहीं है और न ही मै तुम्हे पूरी तरह से जानता हूँ. इसलिए मै तुम्हे किसी मापदंड पर नहीं रख सकता और न ही मुझे ये अधिकार ही है.
आज इस खामोश, सुने, और शांत दिल में तुम्हारी एक काल्पनिक छवि का आभाष हो रहा है. मै तुम्हारी तारीफ नहीं कर रहा बस अपने उदगार व्यक्त कर रहा हूँ, शायद तुम्हे अच्छा न लगे पर...
कहने के लिए लोग तो तुम्हे चाँद की उपमा भी देते होंगे पर मेरे लिए चाँद का कोई महत्व नहीं है. क्यों की चाँद से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल सकती है. और न ही चाँद में वो सरलता और गहराई है जो तुम्हारी आँखों में है जो सारी दुनिया को अपने में समाहित कर सकती है, जिनका आभाष मैं अपने अंतर्मन में कर सकता हूँ. मुझमे चाँद के लिए वो प्रेम नहीं जो तुम्हारे लिए उमड़ता है, निश्चल और निःस्वार्थ प्रेम...
न जाने कितनी तरह की कल्पनाए मेरे अन्दर अंगड़ाई लेती है पर तुम शायद उनमे से एक नहीं हो. मेरा और तुम्हारा सम्बन्ध न तो मित्रता है न ही प्रेम..., या फिर कोई एक जिसमे स्वार्थ की झलक न दिख सके. मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा और न ही तुमसे मिलने कि कोई अभिलाषा ही है. तुम्हारा यथार्थ अस्तित्व भी मेरी कल्पना से मेल नहीं खाता होगा.
तुम जैसी भी हो अपनों के लिए बहुत प्यारी हो...
और हाँ तुम्हारी आखों के काज़ल को खूबसूरत कहने वालों कि कोई गिनती नहीं होगी पर मैं कहना चाहता हूँ कि तुम सलामत रखना अपनी खूबसूरती को,हिफाज़त से रखना अपने सरल स्वभाव को,संजोकर रखना रिश्तों कि अहमियत को,समेटकर रखना अपनों कि यादों को कायम रखना सबकी उम्मीदों को और सबसे बड़ी बात संभालकर रखना अपने आपको. क्यों कि तुम्हे बस ज़िन्दगी ही नहीं जीनी है...

न जाने क्या क्या लिख दिया है मैंने.ख़ैर...
एक और आखिरी बात, अपनी स्मृतियों कि किताब के किसी पन्ने पर मेरा भी नाम लिख लेना शायद जीवन में कभी जब कोई तुम्हारा दर्द बाटने वाला न मिले तो ये अधुरा पन्ना ही काम  आ जाये...

कुछ  अधूरे ख्वाब  आँखों में सजाये अपने ही अंतर्द्वंद से हारा हुआ...
मनीष

Thursday, July 28, 2011

कभी-कभी न जाने क्यू कुछ घुटन सी होती है,
लगता है उसने दर्द में सदा दी हो...

Sunday, July 24, 2011

तू खुशनसीब है तेरे चाहने वाले बहुत है,
हमे तो अक्सर  अपनों की भी बददुआ  ही नसीब होती है...

Friday, July 22, 2011

बदलते वक़्त के साथ हमने मोहब्बत के मायने बदलते देखा है,
कभी ये एहसास थी आज महज़ अल्फाज़  है...

Thursday, July 21, 2011

आंखें...

कभी  उठती कभी झुकती,
बहुत चंचल हैं ये  आंखें...
कशिश है  इक  इन पलकों में,
हया से भरी हैं ये आंखें...
आखिर कब तक ढूंढेंगे
अपना अक्स इनमे हम,
सागर हो तो ढूंढ़ भी ले ,
कितनी गहरी है ये आंखें...