सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Friday, September 27, 2013

पपीते के पत्ते पर...

पपीते के पत्ते पर पानी गिराता,
ये बादल बढ़ा है मन को रिझाता,
कही शोर बिजली कड़कने का होवे,
पवन चल रहा है फसल लहराता,

       जो सब कुछ हरा है उसको सजाता,
       पपीते के पत्ते पर... !!

नहीं कोई रेखा किरण की दिखे है,
गरजती है चपला चमक ना दिखे है,
है बदली का घेरा और हल्का अँधेरा,
कही फूल पौधों में आधे खिले हैं,

      ये मौसम हमेशा ही कितना लुभाता,
      पपीते के पत्ते पे...  !!

फसल की सहेली बरखा सुहानी,
झरता है तन से  मोती सा पानी,
धानो की बाली अभी है कुवांरी,
उड़ेले है इसमे बरखा जवानी,

      हल्की फुहारों से प्यास बुझाता,
      ये बादल बढ़ा है मन को रिझाता,
                               पपीते के पत्ते पर... !!


                                                            --- मनीष

Friday, January 25, 2013

यकीं मानो अकेले में बहुत रोया है वो,
उदास चहरे को हँसाने का हुनर आता है जिसे...!!

Thursday, September 06, 2012

एक छोटी सी कहानी

...उस दिन भी मैं और शैल्या उस अमलताश के नीचे बैठे थे। अमलताश पर बहार थी। पीले फूलों से लदा हुआ वह बहुत ही मनोरम दिख रहा था। और ऐसे माहौल में मैं शैल्या को रसायन विज्ञान के कुछ समीकरण समझा रहा था। पर वो ध्यान दे तब तो। हौले से मेरी तरफ खिसकी और मेरे बाएं कंधे पर अपना सर रख दिया। फिर मेरी हथेली अपने हाथों में लेकर धीरे-धीरे सहलाने लगी। मेरे दिल की गतिविधि कुछ असामान्य सी होने लगी। मन में एक तरंग उठी जो मुझे विस्मरण की ओर ले जाने लगी। जो बची-खुची कसर थी, हवा ने पूरी कर दी। उसके बाल  खुले हुए थे और उनमे से कुछ ने हवा का सहारा लेकर मेरे गालो को कुछ इस जादूगरी से छुआ, क्या बताऊ मैं। इतना गहरा विस्मरण मुझे कभी नहीं हुआ था। मुझे अपने चारो ओर  के वातावरण का कुछ भी भान न रहा।
    "नमन ...", उसकी धीमी आवाज ने इस विस्मरण में विक्षोभ उत्पन्न किया।
    "ह्...हाँ..., कहो?"
    "तुम ... मुझे भूलोगे तो नहीं ना ?"
    "पगली, ऐसा कभी हो सकता है। तुम मेरी सबसे अच् ..."
    "कभी भी नहीं ना ...?", वो बीच में ही बोल पड़ी।
    "अगर ऐसा हुआ तो समझना कि  तुम्हारा नमन किसी और दुनिया में खो गया है।", मैंने उसके उड़ते हुए बालों को अपनी उंगली से उसके कान के पीछे फसाते हुए कहा।
फिर अपनी दोनों हथेलियों में उसका चेहरा ले कर अपनी ओर  घुमाया। अजीब सा भाव था उसके चहरे पर, सहमी-सहमी सी लग रही थी। न जाने क्या खोने का डर सता रहा था। उसकी आँखों में मुझे हजारो सवाल नजर आये। उसके डर  ने मुझ पर भी अपना असर दिखाया। माहौल बहुत संजीदा हो गया था। मैंने इसे हल्का करने के लिए अमलताश के दो फूल लिए और उसके कानो की बालियों में लगा दिए।
    "क्या बात है, आज तो सारी बहार सिमट कर तुम्हीं में समां गयी है।", मैंने उसे छेड़ते हुए कहा।
 लाज के मारे उसका चेहरा लाल पड़ गया। उसने आँखें झुका लीं। उसके होठों ने एक कातिलाना मुस्कान से मुझपर हलमा किया। और फिर उसका चेहरा भी झुक गया।


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भाग 1 >>   भाग 1
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Sunday, August 26, 2012

भारतीय शिक्षा पद्धति

भारतीय शिक्षा पद्धति भी अजीब है।  हमारे यहाँ आर्थिक स्थिति के हिसाब से ये तय किया जाता है कि लड़का क्या पढ़ेगा? जी हाँ लड़का क्योकि आज भी समाज का एक बड़ा हिस्सा यही सोच रखता है।  कुछ संभ्रांत परिवार ही हैं जो अपनी लड़कियों को इंजीनियरिंग या मेडिकल की शिक्षा दिलाते है।  निम्न मध्यम वर्गीय परिवार तो आज भी लडकियों को या तो उच्च शिक्षा नही दिला पाते या दिलाते भी है तो बस एक शिक्षिका बनने के लिए।  इसका कारण तो हम सभी जानते हैं, अब देखना यह है की यह सार्वभौम अंतर कम समाप्त होने वाला है।
    मैं बात कर रहा था आर्थिक स्थिति और शिक्षा की। जी हाँ, हमारे देश में 10वीं के बाद का दाखिला इस बात पर निर्भर है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि कितनी सुदृढ़ है।  कुछ साल पहले की बात करे जब हमारे समाज में तीन वर्ग हुआ करते थे:  उच्च-वर्ग, मध्यम-वर्ग और निम्न वर्ग, तब केवल उच्च-वर्ग ही मेडिकल की शिक्षा के लिए सक्षम माना जाता था। और यही वर्ग अपने पाल्यों को 12वीं में जीव-विज्ञान की शिक्षा दिलाता था। मध्यम वर्गीय छात्र गणित पढ़ने को विवश थे। और निम्न वर्ग संभवतः साक्षर होकर ही संतुष्ट था। परन्तु आज समाज में चार वर्ग है, मध्यम वर्ग के दो हिस्से देखे जा सकते है, उच्च मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग।  और आज शिक्षा इतनी महँगी हो गयी है कि केवल उच्च वर्ग ही उसका भार वहन  करने में सक्षम है।  और उच्च मध्यम वर्ग किसी तहर से धक्का लगाकर अपने पाल्यों का दाखिला ही करा पता है, उसके आगे के खर्च में उसकी कमर टूट जाती है। इसके बाद शिक्षा के सन्दर्भ में दोनों निम्न वर्गों की बात भी करना... ।

Wednesday, August 22, 2012

दीवाना जियेगा सदा मुस्कुरा कर...

आहिस्ता  आहिस्ता  कब  तक  ये  वहशत,
दिल  से  लगा कर, लबो  में  छिपाकर ,
दीवाना  बनाकर  रुलाया  हँसा  कर,
कुरेदा  है  मुझको  क्यों  इतना  सताकर...

मै  कहता   रहा  कि बस  कुछ  देर  रुक  जा,
मेरा  दिल  सम्हाल  जाये  तब  तक  ठहर  जा,
नमीं   सुख  जाएगी  पलकों  की  तब  तक ,
चले  जाना  फिर  तुम  जरा  मुस्कुरा  कर ...

मुड  कर  चली  वो  मुझे  छोड़  कर  यूँ ,
रहती  थी  जिसमे  वो  दिल  तोड़  कर  यूँ,
जो  सोचा  ही  होता  अगर  भूल  कर  भी,
तो  जाना  ही  पड़ता  निगाहें  चुरा कर....

कहा  जाते  जाते  अब  नहीं  प्यार  तुमसे,
वादा  करो  तुम  मिलोगे  ना  मुझसे,
करूँ   कैसे  वादा  उन्हें  भूलने  का,
जो  मिलते  थे  हमसे  बाहे  फैला  कर....

रोकू  भी  कैसे  उन्हें  चाह  कर  भी,
बेबस  बहुत  हूँ   मुहब्बत  है  अब  भी,
जाते  हो  जाओ  मुझे  भूल  जाना ,
दीवाना  जियेगा  सदा  मुस्कुरा  कर...

---- नवीन-मनीष