सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Thursday, September 06, 2012

एक छोटी सी कहानी

...उस दिन भी मैं और शैल्या उस अमलताश के नीचे बैठे थे। अमलताश पर बहार थी। पीले फूलों से लदा हुआ वह बहुत ही मनोरम दिख रहा था। और ऐसे माहौल में मैं शैल्या को रसायन विज्ञान के कुछ समीकरण समझा रहा था। पर वो ध्यान दे तब तो। हौले से मेरी तरफ खिसकी और मेरे बाएं कंधे पर अपना सर रख दिया। फिर मेरी हथेली अपने हाथों में लेकर धीरे-धीरे सहलाने लगी। मेरे दिल की गतिविधि कुछ असामान्य सी होने लगी। मन में एक तरंग उठी जो मुझे विस्मरण की ओर ले जाने लगी। जो बची-खुची कसर थी, हवा ने पूरी कर दी। उसके बाल  खुले हुए थे और उनमे से कुछ ने हवा का सहारा लेकर मेरे गालो को कुछ इस जादूगरी से छुआ, क्या बताऊ मैं। इतना गहरा विस्मरण मुझे कभी नहीं हुआ था। मुझे अपने चारो ओर  के वातावरण का कुछ भी भान न रहा।
    "नमन ...", उसकी धीमी आवाज ने इस विस्मरण में विक्षोभ उत्पन्न किया।
    "ह्...हाँ..., कहो?"
    "तुम ... मुझे भूलोगे तो नहीं ना ?"
    "पगली, ऐसा कभी हो सकता है। तुम मेरी सबसे अच् ..."
    "कभी भी नहीं ना ...?", वो बीच में ही बोल पड़ी।
    "अगर ऐसा हुआ तो समझना कि  तुम्हारा नमन किसी और दुनिया में खो गया है।", मैंने उसके उड़ते हुए बालों को अपनी उंगली से उसके कान के पीछे फसाते हुए कहा।
फिर अपनी दोनों हथेलियों में उसका चेहरा ले कर अपनी ओर  घुमाया। अजीब सा भाव था उसके चहरे पर, सहमी-सहमी सी लग रही थी। न जाने क्या खोने का डर सता रहा था। उसकी आँखों में मुझे हजारो सवाल नजर आये। उसके डर  ने मुझ पर भी अपना असर दिखाया। माहौल बहुत संजीदा हो गया था। मैंने इसे हल्का करने के लिए अमलताश के दो फूल लिए और उसके कानो की बालियों में लगा दिए।
    "क्या बात है, आज तो सारी बहार सिमट कर तुम्हीं में समां गयी है।", मैंने उसे छेड़ते हुए कहा।
 लाज के मारे उसका चेहरा लाल पड़ गया। उसने आँखें झुका लीं। उसके होठों ने एक कातिलाना मुस्कान से मुझपर हलमा किया। और फिर उसका चेहरा भी झुक गया।


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पूरी कहानी पढ़ने के लिए कृपया नीचे के लिंक्स पर क्लिक करें :

भाग 1 >>   भाग 1
भाग 2 >>   भाग 2

7 comments:

  1. sabse pahle toh kahaani toh bahut achchi likhi hai.. I enjoyed the conversation between the new recruits of college.

    doosri baat grammar aur spelling ki bahut saari mistakes hain unko theek kariye.

    kahaani mein pravaah bahut achha hai.. lay hai..par second part mein mujhe kahin kahin aisa lagaa ki shabd chayan kuchh heavy sa ho gaya hai jisko thoda saa aur saral banaa sakte the.. par ye likhne wale par depend hai ki uski kya choice hai..

    overall 8/10 :)

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    1. बहुत बहुत आभार भावना जी...
      आपके सुझाव सर-आँखों पर

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  2. बेहतरीन कहानी मनीष जी...

    आपकी अभिव्यक्ति बहुत सहज और रूहानी किस्म की है...बांधती है पाठकों को....

    अगली कहानी की प्रतीक्षा में....
    अनु

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    1. अनु जी, सराहना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  3. बहुत सुन्दर एहसासपूर्ण कहानी !
    आभार !

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    1. आभार तो मुझे व्यक्त करना चाहिए, बहुत बहुत शुक्रिया मनीष जी

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  4. abhi ek achchhe teacher ki jarurat hai .....mai bhi abhi khali hoon chaho to aajma sakte ho...........

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