सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Tuesday, February 14, 2012

मैं वो हूँ...

प्रेम की वेदी पर दिन-रात मैं जलता रहा,
मैं वो हूँ जिसको कि वो आँख से छलता रहा...
अब उजाला मेरी लौ का देखकर उसने कहा,
कौन है अंगार में जो बैठ कर हसता रहा !!






( चार पंक्तियाँ एक कविता की...)

6 comments:

  1. मेरी हर रचना पर प्रतिक्रिया आती है आपकी, बहुत बहुत आभार...

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  2. वाह जनाब .... क्या बात है

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    1. कोई बात नही जनाब...
      शुक्रिया पढने के लिए..

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  3. नमस्कार जी,
    ये कविता बहुत पसंद आयी है,

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    1. नमस्कार भास्कर जी
      आपको कविता पसंद आई ये मेरे लिए गौरव की बात है...

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