सादर अभिनन्दन...


सादर अभिनन्दन...

Monday, October 24, 2011

गाँव हूँ मैं...


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"गाँव रोमांटिक है
ट्रेन की खिड़की से मगर...
हकीकत के कागज पर
तस्वीर  कुछ अलग ही है...
पधारो, आओ..."
आओ खींचो तस्वीरें,
लिखो खुद के अल्फाजों को...
मेरी नियति है बस
गाँव हूँ मैं तुम्हारा शहर नहीं...
पिछड़ा हूँ पर मरा नहीं,
तुम्हारी तरह..."
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7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...

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  2. सादर आभार समय निकाल कर पढ़ने के लिए...
    ...दीपमालिका पर्व की सप्रेम शुभकामनाएं

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  3. सुंदरता से सराबोर ,कोमल एहसास वाली सुंदर रचना ।

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  4. आभार आपका संजय जी...

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  5. ab gaaon bechara kya kare...jab se ye real estate companies ki nazar us par padi hai wo ekdum modern ho gaya hai ..ab wo sirf foto kheenchne ki nahin invest karne ki cheez ho gaya hai..

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  6. लगता है real estate वालो ने advertisement का काम आपको ही सौपा है...
    बहरहाल, शुक्रिया नज़र-ए-इनायत का... :)

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  7. bahut hi behtar rachna manish ji.....aaj to gaaon ki yaad dila di tumne :)

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