गुलाब की शाख...
चंद पत्तियां, कुछ फूल,
और कांटे बेशुमार ...
दिखाते सच जीवन का,
कुछ भी नहीं सृजित,
सृष्टि में अस्तित्व में,
सम्पूर्ण और एक रूप...
हर कही हर जगह,
सब रंग हैं, धूप है, छाँव है,
संतुलन के लिए, पर...
कभी अधिक कभी न्यून...
जैसे कांटे पत्ती और फूल...
एक सा लगता है अब,
गुलाब और जीवन...
Is tashvir ko dekha aur bas anayaas hi pantiyan likh di...
ReplyDeleteab aap bhi yaha apne vichaar vyakt kar sakte hai...
bahut achha likha hai..gulab ho ya aur koi phool..phool k bheetar ki khushboo tak pahunchne k liye kaanton se guzarnaa hi hota hai..
ReplyDeleteसराहना के लिए सादर धन्यवाद ...
ReplyDeleteअगर कभी समय मिले और आप फिर से मेरा ब्लॉग पढ़ सके तो जरा समालोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाइयेगा , जिससे मेरा लेखन कुछ निखर सके.
waah... bahut khoob...
ReplyDeletekitni sundarta se aapne jeevan aur gulaab ko ek hi bata diya... waah...
सराहना ले लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना.....
ReplyDeleteआभार... सुषमा जी
ReplyDeletegulaab ke sahaare jeewan sangharsh ka aaina dikha diya....bahut khub..:)
ReplyDeleteसराहना ले लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
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