कभी डूबे तो तिनको ने दिया था हाथ बढ़कर के,
कभी कश्ती में थे फिर भी लहरों से मात खायी है...
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कभी ग़म से घिरे थे फिर भी हसीं ने साथ ना छोड़ा,
कभी खुशियों की महफ़िल में भी आँखें डबडबाई है...
( कुछ पंक्तियाँ एक मेरी एक कविता से जो मेरे अंतर्मन में है ...)
कभी कश्ती में थे फिर भी लहरों से मात खायी है...
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कभी ग़म से घिरे थे फिर भी हसीं ने साथ ना छोड़ा,
कभी खुशियों की महफ़िल में भी आँखें डबडबाई है...
( कुछ पंक्तियाँ एक मेरी एक कविता से जो मेरे अंतर्मन में है ...)
जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
ReplyDeleteसादर आभार...
ReplyDeletebahut khoob bhai...
ReplyDeleteadhoori hai
ReplyDeleteji, sahi kaha. aur ab tak puri bhi nahi ho payi hai, bas kuchh aur panktiya likhi hai...
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