अभिव्यक्ति...
...शब्दों में संवेदना की !
सादर अभिनन्दन...
सादर अभिनन्दन...
Thursday, February 09, 2012
बिखरने के लिए...
टुकड़ों में जीने की आदत छोड़नी
होगी हमे,
बिखरने के लिए जमीं भी कम पड़ने लगी है...
( मेरी कविता की दो पंक्तियाँ
)
2 comments:
विभूति"
10 February 2012 at 21:04
nice...
Reply
Delete
Replies
Reply
मनीष
11 February 2012 at 11:38
सादर आभार...
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
nice...
ReplyDeleteसादर आभार...
ReplyDelete