1.
एक नज़र देखा और तेरे तलबगार हो गए,
खता थी या मोहब्बत जो रुसवा सरे-बाज़ार हो गए...
2.
यूँ खुद को दोष न दे ये इनायत है,
कि ग़म ही सही कुछ तो दिया उसने...
एक नज़र देखा और तेरे तलबगार हो गए,
खता थी या मोहब्बत जो रुसवा सरे-बाज़ार हो गए...
2.
यूँ खुद को दोष न दे ये इनायत है,
कि ग़म ही सही कुछ तो दिया उसने...
सराहना के लिए धन्यवाद सुषमा जी...
ReplyDeleteलाजबाब ....बहुत खूब ...!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार केवल राम जी
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