अभिव्यक्ति...
...शब्दों में संवेदना की !
सादर अभिनन्दन...
सादर अभिनन्दन...
Thursday, July 21, 2011
आंखें...
कभी उठती कभी झुकती,
बहुत चंचल हैं ये आंखें...
कशिश है इक इन पलकों में,
हया से भरी हैं ये आंखें...
आखिर कब तक ढूंढेंगे
अपना अक्स इनमे हम,
सागर हो तो ढूंढ़ भी ले ,
कितनी गहरी है ये आंखें...
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